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ऑफिस में लोग मुझे बुजुर्ग कहते, तंज कसते, आखिर 25 की उम्र में बदलवाने पड़े घुटने, एक युवा का दर्द

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पिछले दो साल से मेरे घुटनों में दर्द रहता था. इस वजह से चलने -फिरने में थोड़ी परेशानी होती थी. दर्द जब ज्यादा बढ़ता था तो मैं मेडिकल स्टोर से जाकर दवा लेता था और उसको खा लेता था. करीब 3 महीने तक मैं ऐसा ही करता रहा, लेकिन धीरे-धीरे घुटनों का दर्द बढ़ने लगा और मुझे सीढ़ियां चढ़ने में भी परेशानी होने लगी. मैं कुछ देर भी अगर कहीं खड़ा हो जाता था तो पैरों में दर्द होने लगता था. ऑफिस में लोग मेरा मजाक उड़ाते थे कि 25 साल की उम्र में ही बुजुर्गों जैसी हालत हो गई है. घुटनों में दर्द की वजह से मैं दोस्तों के साथ कहीं घूमने -फिरने से भी बचता था, सोचता था कि उनकी तरह दौड़ भाग नहीं सकूंगा तो मजाक बनेगा.घुटनों की समस्या से मैं मानसिक रूप से भी परेशान होने लगा था.

धीरे-धीरे परेशानी ज्यादा बढ़ने लगी तो मैं घर के पास के ही एक अस्पताल में गया. जहां डॉक्टरों ने घुटनों की जांच के लिए एक्स-रे और एमआरआई किया, तो पता चला है कि घुटनों का कार्टिलेज बिलकुल घिस गया है. इस वजह से ही घुटनों में इतना दर्द रहता है औरचलने-फिरने में परेशानी हो रही थी.

महज 25 साल की उम्र में घुटनों का इस तरह खराब हो जाना मेरे लिए एक बड़ा झटका था. अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि कार्टिलेज घिसने के बाद ये ठीक नहीं होता है और इसकी सर्जरी ही की जाती है. इसके लिए घुटनों का ट्रांसप्लांट कराना पड़ेगा. यह सुनकर मैं अस्पताल से वापिस चला गया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि महज 25 साल की उम्र में ही मुझे अपने घुटने बदलवाने पड़े. इस वजह से मैने ट्रांसप्लांट नहीं कराया और फिर से दवा खानी शुरू कर दी.

कई दिनों तक मैं यही सोचता रहा कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि घुटने बिलकुल खराब हो गए है, लेकिन वजह पता नहीं चली, इस बीच मैं आसपास के डॉक्टरों को दिखाने लगा, डॉक्टरों ने इसके लिए मुझे इंजेक्शन थेरेपी भी दी, लेकिन कोई आराम नहीं मिला और हर दिन मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था. जब पीड़ा असहनीय हो गई तो मैं फिर से अस्पताल गया और घुटनों के ट्रांसप्लांट का खर्च पूछा. इस प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों ने मुझे ट्रांसप्लांट का खर्च 3 लाख रुपये बताया, लेकिन इतना खर्च मेरे बजट में नहीं था. इस वजह से सर्जरी को मैंने टाल दिया और कम खर्च में इलाज कराने के विकल्प खोजने लगा.

फिर सरकारी अस्पताल गया

इस बीच एक मित्र ने सलाह दी कि सरकारी अस्पताल में काफी कम खर्च में ट्रांसप्लांट हो सकता है. इसको देखते हुए मैंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अपना ट्रीटमेंट शुरू कराया. वहां पहले सभी टेस्ट हुए और फिर एक महीने तक मेरा दवाई से इलाज चला. उसके बाद मुझे ट्रांसप्लांट की डेट दी गई. 2 महीने बाद ट्रांसप्लांट होना था. इससे पहले डॉक्टरों ने मेरे कई तरह के टेस्ट किए सभी टेस्ट में फिट होने के बाद ट्रांसप्लांट किया गया. अस्पताल में दोनों घुटनों के ट्रांसप्लांट का खर्च करीब डेढ़ लाख रुपये आया. ट्रांसप्लांट सर्जरी सफल रही और मेरे दोनों घुटने बदल गए.

ट्रांसप्लांट के बाद शुरू के कुछ महीने डॉक्टरों ने आराम करने की सलाह दी और फिर धीरे धीरे घुटनों को हल्का चलाने के लिए कहा . डॉक्टरों ने मुझे एक ही जगह देर तक न बैठने की सलाह भी दी थी और इस दौरान कुछ दवाएं भी मैं खा रहा था. दर्द के लिए हिटिंग पैड भी दिया गया था. करीब 4 महीने मुझे सर्जरी के बाद की रिकवरी में लग गए. इस दौरान फिजियोथेरेपी भी कराई. डॉक्टरों की सलाह के हिसाब से रूटीन बनाया. अब मैं बिलकुल फिट हूं और ट्रांसप्लांट के बाद अपने रोजमर्रा के काम कर रहा हूं.

इस बीमारी के कारण बदले घुटने

डॉक्टरों ने बताया था कि मुझे रूमेटाइड आर्थराइटिस की बीमारी थी. इस वजह से घुटने खराब हो गए थे. बढ़ा हुआ वजन भी इसका कारण था. शुरू में मैने घुटनों के दर्द को हल्के में लिया और सालों तक खुद से दवा खाता रहा. इस वजह से घुटनों की स्थिति बिगड़ गई थी और ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ी थी. लोगों को मैं सलाह देता हूं कि अगर आपके घुटनों में दर्द रहता है और वजन भी बढ़ा हुआ है तो इसे हल्के में न लें और इलाज कराएं. अगर समय पर परेशानी का ध्यान रखेंगे तो घुटनों को खराब होने से बचा सकते हैं.

( ये कहानी है उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले विनोद शर्मा ( बदला हुआ नाम) की, जिनको महज 25 साल की उम्र में घुटनों का ट्रांसप्लांट कराना पड़ा था)

क्यों कम उम्र में घुटने हो रहे खराब

दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में आर्थोपेडिक्स विभाग में रेजिडेंट डॉ. रहे संकल्प मेहता Tv9 से बातचीत में बताते हैं कि घुटने आर्थराइटिस की बीमारी के कारण खराब होते है. कुछ दशकों पहले तक ये बीमारी बुजुर्गों को होती थी. लेकिन अब 20 से 35 साल उम्र वाले भी इसका शिकार हो रहे हैं. इसका बड़ा कारण खराब खानपान है. बिगड़े हुए खानपान की वजह से मोटापा बढ़ता है तो आर्थराइटिस का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है. लोगों में अब विटामिन डी की कमी भी देखी जा रही है. इससे भी घुटने खराब होते हैं. कार्टिलेज घिसने से घुटने खराब होते हैं. अगर एक बार ये खराब हो जाएं तो खुद से ठीक नहीं होते हैं. इसके लिए जरूरी की जरूरत पड़ती है.

लोगों को यह सलाह भी है कि वह घुटनों में हो रहे दर्द को हल्के में न लें. अगर आपको पैरों या घुटनों के आसपास कभी कोई चोट लगी है तो इसे हल्के में न लें.

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