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पूर्वांचल की सियासत में बोलती थी मुख्तार की तूती, लोकसभा चुनाव पर कितना पड़ेगा मौत का असर?

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उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में सजा काट रहे बाहुबली मुख्तार अंसारी की गुरुवार देर शाम हार्ट अटैक से मौत हो गई. गुरुवार को मुख्तार की जेल में तबीयत बिगड़ी थी, जिसके बाद उन्हें रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में लाया गया था. शुक्रवार को मुख्तार अंसारी को उनके पुश्तैनी कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा. मुख्तार अंसारी की मौत ऐसे समय हुई है, जब लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश गर्म है. ऐसे में मुख्तार की मौत पर सियासत होना लाजमी है.

मुख्तार अंसारी बाहुबली होने के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय से भी आते थे. पूर्वांचल की सियासत में मुख्तार की तूती बोलती थी. ऐसे में मुख्तार की मौत पर सियासी दलों ने सरकार को घेरने की कवायद शुरू कर दी है. बसपा, आरजेडी, कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और एआईएमआईएम तक ने पांच बार के विधायक और बाहुबली मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. मायावती से लेकर अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी तक न्यायिक जांच की मांग उठा रहे हैं. वहीं, योगी सरकार और बीजेपी विपक्ष के द्वारा गढ़े जा रहे नैरेटिव को तोड़ने के बजाय खामोशी अख्तियार कर रखी है.

परिवार ने जताई थी मौत की आशंका

दरअसल, दो दिन पहले जब मुख्तार अंसारी की जेल में हालत बिगड़ने पर उनको बांदा मेडिकल कॉलेज लाया गया था, तभी उनके भाई अफजाल और बेटे उमर अब्बास ने मौत की आशंका जताई थी. जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए थे. अफजाल ने तो यह तक कहा था कि उसके भाई को जेल में जहर दिया जा रहा है. मुख्तार अंसारी के परिवार और उनके आरोप के बहाने विपक्षी दल योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर सियासी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. इस तरह विपक्ष मुख्तार की मौत के बहाने मुस्लिम समुदाय के वोटबैंक को साधने की कवायद में है तो बीजेपी ने साइलेंट रहते हुए बहुसंख्यकों को राजनीतिक मैसेज दे दिया है.

पांच बार विधायक रहे मुख्तार

मुख्तार अंसारी भले ही मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं, लेकिन सियासी तूती पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस और आजमगढ़ की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बोलती है. पूर्वांचल के इस इलाके की राजनीति में पिछले पच्चीस सालों से मुख्तार अंसारी अहम भूमिका अदा करते आ रहे हैं.मुख्तार जहां खुद पांच बार विधायक रह चुके तो उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद हैं. मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी मऊ से विधायक हैं जबकि भतीजा मुन्नू अंसारी मोहम्दाबाद से विधायक हैं. इसके अलावा मऊ से मुख्तार के करीबी अतुल राय सांसद हैं. मुख्तार अंसारी कभी बसपा प्रमुख मायावती के करीबी रहे तो कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के आंख के तारे बने रहे.

विरासत में मिली सियासत

मुख्तार को सियासत विरासत में मिली है. उनके दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे जबकि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार उन के नाना थे. मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्युनिस्ट नेता थे. इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं. मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने अपने पिता की तरह कम्युनिस्ट पार्टी से सियासी पारी शुरू की थी, लेकिन मुख्तार ने बसपा के हाथी पर सवारी कर सियासत में कदम रखा.

मुख्तार अंसारी का सियासी सफर

मुख्तार अंसारी पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आखिरी तीन चुनाव उन्होंने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े. मुख्तार अंसारी किसी के लिए माफिया हैं तो कोई अपना मसीहा मानता है. पूर्वांचल की राजनीति में मुख्तार अंसारी का उतना ही असर है जितना कि बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन का हुआ करता था. हालांकि, 2005 में बिहार की सत्ता के बदलते ही शहाबुद्दीन के बुरे दिन शुरू हो गए थे तो यूपी में 2017 में सत्ता बदलते ही मुख्तार अंसारी के लिए मुसीबत बन गई.

योगी और मुख्तार के बीच सियासी जंग

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अंसारी दोनों ही पूर्वांचल से आते हैं. गोरखपुर योगी का क्षेत्र हुआ करता था तो गाजीपुर-मऊ मुख्तार का. पूर्वांचल में मुख्तार बनाम बृजेश सिंह के बीच सियासी वर्चस्व की जंग रही है. ऐसे में साल 2005 में मऊ में हुए सांप्रदायिक दंगे के चलते योगी और मुख्तार के बीच भी सियासी जंग छिड़ गई, क्योंकि योगी खुद को हिंदुत्व के नेता के तौर पर स्थापित कर रहे थे. वो गोरखनाथ मंदिर के महंत भी थे और बीजेपी से सांसद थे. ऐसे में मुख्तार और योगी के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा.

19 साल जेल में बंद था मुख्तार

योगी आदित्यनाथ के 2017 में यूपी की सत्ता पर विराजमान होते ही मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसा जाने लगा था. हालांकि, मुख्तार 19 सालों से जेल में बंद थे. इसके बाद भी उनका राजनीतिक रसूख बरकरार रहा, लेकिन बीजेपी की सरकार आने के बाद मुख्तार के खिलाफ लगातार पुलिस कार्रवाई की जा रही थी. मुख्तार और उनके करीबियों के अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिए गए. कई बेनामी संपत्तियां जब्त कर ली गईं. परिवार के लोगों पर भी कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा. योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी को पंजाब की जेल से यूपी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पूरी ताकत झोंक दी थी. इसके बाद ही उन्हें यूपी लाकर बांदा जेल में शिफ्ट किया गया था, जिसका भी बीजेपी ने चुनाव में लाभ उठाया था.

बीजेपी को सियासी फायदा

मुख्तार अंसारी बाहुबली थे, उसकी तमाम अपराधिक मामलों में लिप्तता थी. ऐसे में योगी सरकार ने उनके खिलाफ शिकंजा कसकर एक राजनीतिक संदेश देने की कवायद कर पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी के सियासी असर को खत्म करने का दांव चला था. वहीं, अब मुख्तार अंसारी की मौत के बाद बीजेपी ने भले ही खामोशी अख्तियार कर रखी हो, लेकिन सोशल मीडिया में जिस तरह से लोग उनकी मौत पर यह कह रहे हैं कि जिसकी जो जगह थी. माना जा रहा है कि मुख्तार अंसारी की मौत से बीजेपी को पूर्वांचल के इलाके में सियासी फायदा हो सकता है, क्योंकि इस इलाके में कई लोग उनसे पीढ़ित थे. इसके अलावा बहुसंख्यक समाज भी मुख्तार अंसारी के दंबगई से खुश नहीं था.

विपक्ष ने उठाई जांच की मांग

माफिया मुख्तार अंसारी की मौत से बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण बीजेपी के साथ हो सकता है, क्योंकि विपक्षी दल के नेता जिस तरह से मुख्तार अंसारी की मौत की न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं. मायावती ने कहा कि मुख्तार अंसारी की जेल में हुई मौत को लेकर उनके परिवार द्वारा जो लगातार आशंकाएं व गंभीर आरोप लगाए गए हैं उनकी उच्च-स्तरीय जांच जरूरी है, ताकि उनकी मौत के सही तथ्य सामने आ सकें,ऐसे में उनके परिवार का दुखी होना स्वाभाविक है. मायावती ही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी मुख्तार अंसारी के बहाने बीजेपी सरकार को घेरा है. इसके अलावा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव ने भी मुख्तार अंसारी की मौत की न्यायिक जांच की मांग उठाई है.

तेजस्वी और पप्पू यादव ने भी जताया दुख

तेजस्वी यादव ने कहा कि यूपी के पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत का दुखद समाचार मिला, उनके परिवार को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें. कहा कि कुछ दिन पहले उन्होंने शिकायत की थी कि उन्हें जेल में जहर दिया गया है, फिर भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया. प्रथम दृष्टया, यह उचित और मानवीय नहीं लगता है. संवैधानिक संस्थाओं को ऐसे अजीब मामलों और घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए. साथ ही पप्पू यादव ने भी मुख्तार अंसारी की मौत को ‘संस्थागत हत्या’ करार दिया और मामले में अदालत की निगरानी में जांच की मांग की.

वोट बैंक की सियासत शुरू

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो मुख्तार अंसारी की मौत के सहारे विपक्षी दलों की कोशिश मुस्लिम वोटों के विश्वास को जीतना है, क्योंकि मुख्तार मुस्लिम समुदाय से आते हैं. पूर्वांचल के कई जिलो में मुस्लिम वोटर काफी बड़ी संख्या में है. अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक मुस्लिम वोटों को सियासी संदेश देने के लिए ही मुख्तार की मौत पर सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार को घेर रहे. इसके बहाने यह बताने की कोशिश हो रही है कि मुख्तार अंसारी की मौत स्वाभाविक नहीं है बल्कि एक साजिश के तहत उन्हें मारा गया. ऐसा ही मुस्लिम समुदाय के लोग मान भी रहे हैं, जिसे समझते हुए विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं.

मुख्तार की मौत का चुनाव पर असर

हालांकि, विपक्षी दल इस बात को भी बाखूबी समझ रहा है कि मुख्तार अंसारी के मामले को बहुत ज्यादा उठाने से रिवर्स पॉलराइजेशन का भी खतरा है. इसीलिए सपा, बसपा और आरजेडी तक मुख्तार अंसारी के परिवार के आरोपों को ही अपनी ढाल बना रहे हैं. मुख्तार की मौत से सहानुभूति का फायदा गाजीपुर और मऊ सीट पर मिल सकता है, लेकिन बाकी जगह पर चुनाव लाभ की बहुत ज्यादा संभावना नहीं दिख रही है. मुख्तार अंसारी दो दशक से जेल में बंद है और योगी सरकार के आने के बाद कानून व्यवस्था मजबूत हुई है. इसीलिए मुख्तार अंसारी का सियासी ग्राफ बहुत ज्यादा बढ़ नहीं पाया और न ही उनके परिवार का. इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में मुख्तार की मौत सियासी चर्चा के केंद्र बिंदू में रहेगा?

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