गाजा में युद्धविराम पर प्रस्ताव पारित… क्या होगा अगर इजरायल ने नहीं मानी UN सिक्योरिटी काउंसिल की बात?
गाजा में युद्धविराम के पक्ष में यूनाटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल (UNSC) में प्रस्ताव पारित हो गया है. सोमवार को पारित हुए प्रस्ताव में रमजान के महीने के लिए तत्काल युद्धविराम, बंधकों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई और गाजा में मदद पहुंचाने में तेजी की मांग की गई है. प्रस्ताव के पक्ष में 14 वोट पड़े जबकि अमेरिका ने वोट नहीं किया. अब सवाल खड़ा होता है कि क्या इजरायल सिक्योरिटी काउंसिल की बात को मानेगा. अगर वो प्रस्ताव की अनदेखी करता है तो उस पर क्या एक्शन होगा?
UNSC के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक पोस्ट में कहा कि सुरक्षा परिषद ने गाजा में बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. उन्होंने आगे कहा, ‘इस प्रस्ताव को अवश्य ही लागू किया जाना चाहिए. विफलता माफी योग्य नहीं होगी.’ चलिए जानते हैं कि क्या यूनाटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल के प्रस्ताव को नज़रअंदाज़ करने पर वो किसी देश के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है.
क्या UNSC इजरायल के खिलाफ कार्रावाई कर सकता है?
UNSC में सोमवार को गाजा का प्रस्ताव पारित होने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी. इसमें UNSC के महासचिव के उप प्रवक्ता फरहान हक से फैसले को लेकर कई सवाल पूछे गए. इनमें से एक सवाल का जवाब देते हुए फरहान हक ने कहा कि सुरक्षा परिषद के सभी प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय कानून के बराबर हैं. वो उतने ही बाध्यकारी हैं जितने अंतर्राष्ट्रीय कानून हैं.
इस प्रस्ताव को अमल में लाने की तैयारी को लेकर प्रवक्ता फरहान हक ने साफ किया कि इसे जमीनी स्तर पर लागू करना अंतर्राष्ट्रीय इच्छा पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा, ‘प्रस्ताव को अमल में लाना इस मामले से संबंधित देशों की इच्छा पर निर्भर करता है. साथ ही यह सुरक्षा परिषद के सदस्यों की इच्छा पर भी है जो सुनिश्चित करें कि वो जिन चीजों की मांग कर रहे हैं उनका पालन किया जाए.’
अंतरराष्ट्रीय मामलों की समझ रखने वाले एक्सपर्ट्स की राय है कि अगर गाजा में युद्ध विराम नहीं होता है, तो सिक्योरिटी काउंसिल की इजरायल या किसी भी देश पर कार्रावाई करने की संभावा न के बराबर है.
पहले भी UNSC प्रस्ताव हुए हैं नज़रअंदाज़
यूनाटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल यूनाटेड नेशन के 6 प्रमुख अंगों से एक है. विश्व शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करते के मकसद से इसकी स्थापना 24 अक्टूबर,1945 को हुई थी. यह एक तरह का वैश्विक मंच है जो विवादों के निटपने के तरीकों पर चर्चा करता है. समस्या की गंभीरता को समझते हुए यह संगठना समय-समय पर प्रस्ताव पारित करता है. हालांकि, ऐसा कई बार हुआ है जब इन प्रस्तावों को संबंधित देशों ने नज़रअंदाज़ किया है.
इसे लेबना के उदाहरण से समझ सकते हैं. काउंसिल फाॅर फाॅरेन रिलेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, सिक्योरिटी काउंसिल दशकों से कहती रही है कि लेबनान सरकार को अपने क्षेत्र पर नियंत्रण रखना चाहिए. 2004 को पारित संकल्प 1559 में ‘सभी लेबनानी और गैर-लेबनानी मिलिशिया के विघटन और निरस्त्रीकरण का आह्वान किा गया था’. ‘लेबनानी मिलिशिया’ से इशारा हिजबुल्लाह की तरफ था. प्रस्ताव पारित होने के बाद भी, लेबनान सरकार ने इसका पालन नहीं किया. इस सब के बावजूद, लेबनान के खिलाफ UNSC की तरफ से कोई कार्रावाई नहीं हुई.
क्यों नज़रअंदाज़ हो जाते हैं UNSC के फैसले?
यूनाटेड नेशन के फैसलों की अनदेखी किए जाने की एक प्रमुख वजह है कि UN के पास अपनी कोई स्थायी सेना या पुलिस बल नहीं है. जब भी UN को कोई ऑपरेशन करना होता है, तो वो सदस्य राज्यों से आवश्यक सैन्य और पुलिस कर्मियों का योगदान करने को कहता है. इनको UN पीसकीपर (शांतिरक्षक) कहते हैं. शांतिरक्षक अपने-अपने देश की वर्दी पहनते हैं. इसके अलावा, वो UN का एक नीला हेलमेट पहनते हैं. UN पीसकीपर की पहचान के लिए उन्हें एक बैज भी दिया जाता है. शांति अभियानों के नागरिक कर्मचारी अंतरराष्ट्रीय सिविल सेवक होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र सचिवालय द्वारा भर्ती और तैनात किया जाता है.
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