‘चमत्कारी’ तालाब वाला संगारेड्डी का मंदिर, जहां ब्रह्मा ने की थी शिवलिंग की स्थापना, कहलाता है ‘दक्षिण काशी’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना के दौरे पर हैं. पीएम मोदी हैदराबाद से करीब 60 किलोमीटर दूर संगारेड्डी में 6,800 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं को लाॅन्च करने के लिए पहुंच चुके हैं. इन परियोजनाओं में सड़क, रेल और पेट्रोलियम जैसे कई प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं. पीएम के दौरे से संगारेड्डी चर्चा में आया गया है. वो संगारेड्डी जहां का श्री केतकी संगमेश्वर स्वामी मंदिर को ‘दक्षिण काशी’ कहते हैं.
केतकी संगमेश्वर स्वामी मंदिर जहीराबाद शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर झारासंगम गांव में स्थित है. यह भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है. स्थानीय लोगों के बीच इस मंदिर के निर्माण की एक कहानी काफी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि सूर्य वंश के राजा कुपेंद्र के सपने में भगवान शिव आए थे, जिसके बाद उन्होंने मंदिर बनने का फैसला लिया. हिंदू पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान ब्रह्मा ने ही यहां शिवलिंग की स्थापना की थी. आइए जानते हैं संगारेड्डी के इस मंदिर के बनने का दिलचस्प किस्सा.
वो किस्सा जिससे मंदिर की नींव पड़ी
तेलंगाना टूरिज्म की वेबसाइट के मुताबिक, एक बार सूर्य वंश के राजा कुपेंद्र एक त्वचा रोग से पीड़ित हुए. कोई भी वैद्य उनका इलाज नहीं कर पा रहा था. एक दिन वो अचानक केतकी वनम के जंगल पहुंचे. वहां उन्हें एक जलधारा दिखी जहां उन्होंने स्नान किया. जैसे ही उन्होंने अपने शरीर को पानी से साफ किया उनके साथ एक चमत्कार हुआ. जो त्वचा रोग कोई वैद्य ठीक नहीं कर पाया, वो रोग जलधारा के पानी से पूरी तरह से ठीक हो गया. कहते हैं कि उसी रात को राजा कुपेंद्र को सपने में भगवान शिव के दर्शन भी हुएं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सपने में भगवान शिव ने राजा को उसी जगह एक मंदिर बनाने को कहा. राजा ने उनकी बात मानी और एक मंदिर बनाकर भगवान शिव को समर्पित किया. इस मंदिर में एक जलधारा बनाई गई जिसे पुष्करणी (पवित्र तालाब) कहा जाता है. क्योंकि ये 8 तीर्थों (नारायण, धर्म ऋषि,वरुण, सोम, रुद्र, इंदिरा और दाता) से युक्त है इसलिए इसे ‘अष्ट तीर्थ अमृत गुंडम’ के नाम से भी जाना जाता है.
ब्रह्मा ने की थी शिवलिंग की स्थापना
इस जगह को लेकर एक हिंदू पौराणिक कथा भी बताई जाती है. माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा सृष्टि की रचना के बाद ध्यान करने के लिए इसी जगह पर आए थे. वर्तमान शिवलिंग की स्थापना भी ब्रम्हा ने की थी. मंदिर की एक और दिलचस्प बात है कि यहां केतकी के फूलों से पूजा की जाती है. आमतौर पर पूजा के लिए इन फूलों का इस्तेमाल नहीं होता. पूजा में उसी जलधारा के पानी का इस्तेमाल होता है जिसे राजा ने 8 तीर्थों से युक्त पुष्करणी (पवित्र तालाब) में बदल दिया था. इस मंदिर में भगवान शिव को केतकी संगमेश्वर कहा जाता है. कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना से कई श्रद्धालु यहां गुंडम पूजा करने पहुंचते हैं.
13वीं शताब्दी का मंदिर
संगारेड्डी में और भी कई ऐतिहासिक मंदिर मिलते हैं. श्री भ्रामराम्बिका मल्लिकार्जुन मंदिर उनमें से एक है. इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था. श्री भ्रामराम्बिका मल्लिकार्जुन मंदिर को दूसरा श्रीशैलम भी कहा जाता है. यह मंदिर पटनचेरु मंडल में स्थित है. शिवरात्रि के समय पर यहां पांच दिनों का उत्सव मनाया जाता है.
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