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कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर को, इस कारण भगवान शिव कहे जाते हैं त्रिपुरारी, जानें पौराणिक कथा

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इंदौर। हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 03.53 मिनट शुरू होगी। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, कार्तिक पूर्णिमा पर इस वर्ष शिव योग, सिद्ध योग और सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित हो रहा है। पंचांग के मुताबिक, 27 नवंबर को ब्रह्म मुहूर्त से ही कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दान कर सकते हैं। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05.05 बजे से सुबह 05.59 बजे तक रहेगा।

स्नान और दान का विशेष महत्व

पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा तिथि को व्रत रखकर पूजा पाठ करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दान करने से पुण्य मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के कारण ही भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा गया है।

देव दिवाली है कार्तिक पूर्णिमा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता स्नान के लिए शिव की नगरी काशी में पधारते हैं और पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं। शाम के समय इस दिन गंगा नदी में जलते दीपक प्रवाहित किए जाते है । यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन वाराणसी में सभी मंदिरों और गंगा के घाटों को दीपों से सजाया जाता है।

भगवान शिव ने किया था त्रिपुरासुर का वध

एक अन्य पौराणिक कथा में बताया गया है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने दानव त्रिपुरासुर का वध किया था। यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। हिंदुओं के अलावा सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का महत्व है। इस दिन सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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