हे पितरेश्वर दया राखियो,करियो मन की चाया जी।।
चौपाई
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर,
चरण रज की मुक्ति सागर ।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा,
मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा ।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे,
सोई अमित जीवन फल पावे ।
जै-जै-जै पितर जी साईं,
पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।
चारों ओर प्रताप तुम्हारा,
संकट में तेरा ही सहारा ।
नारायण आधार सृष्टि का,
पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का ।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते,
भाग्य द्वार आप ही खुलवाते ।
झुंझुनू में दरबार है साजे,
सब देवों संग आप विराजे ।
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा,
कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा ।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी,
जिसका गुणगावे नर नारी ।
तीन मण्ड में आप बिराजे,
बसु रुद्र आदित्य में साजे ।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी,
मैं सेवक समेत सुत नारी ।
छप्पन भोग नहीं हैं भाते,
शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते ।
तुम्हारे भजन परम हितकारी,
छोटे बड़े सभी अधिकारी ।
भानु उदय संग आप पुजावै,
पांच अँजुलि जल रिझावे ।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे,
अखण्ड ज्योति में आप विराजे ।
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी,
धन्य हुई जन्म भूमि हमारी ।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते,
मातृ भक्ति संदेश सुनाते ।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा,
धर्म जाति का नहीं है नारा ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सब पूजे पित्तर भाई ।
हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा,
जान से ज्यादा हमको प्यारा ।
गंगा ये मरुप्रदेश की,
पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की ।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ,
इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा ।
चौदस को जागरण करवाते,
अमावस को हम धोक लगाते ।
जात जडूला सभी मनाते,
नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते ।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है,
जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है ।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी,
सुन लीजे प्रभु अरज हमारी ।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई,
ता सम भक्त और नहीं कोई ।
तुम अनाथ के नाथ सहाई,
दीनन के हो तुम सदा सहाई ।
चारिक वेद प्रभु के साखी,
तुम भक्तन की लज्जा राखी ।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई,
ता सम धन्य और नहीं कोई ।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत,
नवों सिद्धि चरणा में लोटत ।
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी,
जो तुम पे जावे बलिहारी ।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे,
ताकी मुक्ति अवसी हो जावे ।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे,
सो निश्चय चारों फल पावे ।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे,
तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे ।
सत्य आस मन में जो होई,
मनवांछित फल पावें सोई ।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई,
शेष सहस्त्र मुख सके न गाई ।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी,
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ।
अब पितर जी दया दीन पर कीजै,
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।
दोहा
पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम ।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान ।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम ।
पितृ चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।
डिसक्लेमर
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