विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पास हो गया है। इसके साथ ही लोकसभा से लेकर राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, यह कानून अभी से लागू नहीं होगा। सरकार की मानें तो यह 2029 के लोकसभा चुनाव में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू हो सकता है। इससे पहले देश में जनगणना और डिलिमिटेशन यानी सीटों का परिसीमन होगा। इसके बाद ही यह कानून लागू हो पाएगा।
महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या गठबंधन की सरकार में यह संभव हो सकता था। दरअसल, इसको लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि पिछले 27 सालों से महिला आरक्षण को लेकर लगातार कोशिशें होती रही हैं। लेकिन बिल कभी लोकसभा और कभी राज्यसभा में अटक जाता। राज्यसभा में पास हुआ तो लोकसभा भंग हो गई। लोकसभा में पास हुआ तो राज्यसभा में अटक गया। महिला आरक्षण बिल राजनीति की भेंट चढ़ता रहा है
साल 1996 में देवगौड़ा सरकार थी। सरकार ने सदन में बिल टेबल किया। ये बिल आज पेश किए गए बिल का आधार था। क्योंकि इस बिल में भी कहा गया था कि लोकसभा और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हों। बिल सेलेक्ट कमिटी के पास गया। दोनों सदनों में पेश हुआ। पास नहीं हो सका। लेकिन इस साल जदयू नेता शरद यादव का बयान आज भी चर्चा के केंद्र में है। शरद यादव ने कहा था, “क्या आप परकटी महिलाओं को सदन में लेकर आना चाहते हैं?” शरद यादव की सफाई आई थी कि का आशय एलीट महिलाओं को लेकर था। उन्होंने सफाई दी और बाद में आपने बयान के लिए माफी मांगी।
गठबंधन की सरकारें क्यों रही फेल
साल 1997 में देवगौड़ा का इस्तीफा हुआ। इन्द्रकुमार गुजराल पीएम बने। बिल को फिर पेश किया गया। लेकिन पास नहीं हो पाया। साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनीं। कानून मंत्री ताम्बी दुरई ने महिला आरक्षण बिल पेश किया। सदन ने एक वाक्या हुआ। आरजेडी सांसद सुरेंद्र प्रकाश यादव और अजीत कुमार मेहता ने मंत्री के हाथ से बिल की कॉपी छीनी और उसे फाड़ दिया। इस बिल पर बहस होती रही। जुलाई में आए बिल की बहस दिसंबर तक खिंच गई और हद तो तब हो गई जब ममता बनर्जी ने सपा सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कॉलर पकड़ लिया। क्योंकि ममता दरोगा प्रसाद को स्पीकर की कुर्सी तक पहुंचने से रोकना चाहती थीं। ममता बनर्जी उन दिनों इस बिल को पेश करवाने के लिए ख़ासा प्रोटेस्ट कर रही थीं, सरकार पर दबाव बना रही थीं।
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी की कोशिश
साल 1999 में वाजपेयी सरकार अविश्वास प्रस्ताव हार गई। सरकार गिर गई और बिल भी गिर गया। 1999 में भारतीय जनता पार्टी फिर से चुनाव जीतकर आई। अटल बिहारी वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने। महिला आरक्षण बिल को फिर से पेश किया गया। उस वक्त वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी कानून मंत्री हुआ करते थे। बिल पर बहस शुरु हुई। एक राय नहीं बन सकी। चुनाव आयोग ने भी पार्टियों से राय मांगी। कहीं से कोई एकमत सुनाई नहीं देता था। फिर असफलता हाथ लगी थी।
लेकिन बार-बार हो रही इस असफलता के पीछे कोई तो कारण होगा? कारण था – पिछड़ी जातियों की महिलाओं को आरक्षण देने का मुद्दा। दरअसल जब भी इस बिल पर गतिरोध हुए तो सपा-राजद जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का कहना था कि महिलाओं को SC ST कोटे में आरक्षण देने की बात तो बिल में कही जा रही है, लेकिन OBC महिलाओं के लिए कोई बात नहीं है। इससे संसद में ओबीसी जातियों का प्रतिनिधित्व घटेगा। आज भी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों ने ये मांग दोहराई है।
यूपीए सरकार ने राज्यसभा में कराया पास लेकिन लोकसभा में नहीं कर पाई पेश
साल 2008 में देश को सफलता दिखनी शुरु हुई। पार्टियों से मीटिंग के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने राज्यसभा में बिल पेश किया। साल 2010 में राज्यसभा से बिल पास हो गया। बिल को कभी भी लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका। क्योंकि यूपीए के घटक दलों को इससे दिक्कत थी। लालू-मुलायम जैसे साथी यूपीए से दूर हो गए। ममता बनर्जी भी अपने कारणों से गठबंधन से अलग हो गईं। भाजपा और लेफ्ट ने इस बिल पर कांग्रेस का साथ दिया था। 2014 में मनमोहन सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया। देश में आम चुनाव हुए। इसमें कांग्रेस, यूपीए को बड़ी हार का सामने करना पड़ा। लोकसभा भंग हो गई और बिल खुद ब खुद गिर गया। आम चुनाव में भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिला और एनडीए ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई।
2014 के बाद लगातार महिला आरक्षण को लेकर आवाज उठती आ रही थीं। हाल के दिनों में यह महिला आरक्षण के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया। जब भारत राष्ट्र समिति की नेता और केसीआर की बेटी के कविता ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर महिला आरक्षण का विधेयक लाने की मांग की। बीआरएस के बाद कांग्रेस ने भी हैदराबाद CWC की मीटिंग में महिला आरक्षण को लेकर आवाज उठाई। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक को संसद में लाने की बात कही थी।
सरकार ने 19 सितंबर 2023 को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 128वां संविधान संशोधन लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। यह वो मौका था जब संसद का कामकाज पुरानी संसद से नई संसद में शिफ्ट हो रहा था। विशेष सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि महिला आरक्षण कुछ अच्छे काम मेरे ही नसीब में लिखे हैं। पीएम मोदी ने महिला आरक्षण बिल को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया है।
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