भोपाल। छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय खाय से शुरू होगा। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और सप्तमी को उगते सूर्य को जल अर्पित कर व्रत संपन्न किया जाता है। चार दिन चलने वाला इस पर्व में सूर्य और छठी मैय्या की पूजा की जाती है। भोजपुरी एकता मंच के अध्यक्ष कुंवर प्रसाद ने बताया कि इस दिन रखा जाने वाला व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए रखा जाता है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है। शहर में भोजपुरी समाज के लोगों ने पर्व की तैयारी शुरू कर दी है, शीतलदास बगिया घाट, खटलापुरा घाट, बरखेड़ा घाट समेत अन्य घाटों पर पूजा के लिए सफाई कराई जा रही है।
17 नवंबर से नहाय-खाय के साथ शुरूआत
छठ पर्व का पहला दिन जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। उसकी शुरूआत चैत्र या कार्तिक महीने के शुक्ल चतुर्थी से होता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी, गंगा की सहायक नदी या तालाब में जाकर स्नान करते है। लौटते समय वो अपने साथ जल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते है। व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते है। खाना में व्रती कद्दू की सब्जी, मूंग, चना दाल, चावल का उपयोग करते हैं।
खरना या लोहंडा
छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। चैत्र या कार्तिक महीने की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते है। इस दिन व्रती अन्न तो दूर सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है।
संध्या अर्घ्य
– छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। चैत्र या कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। पूरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारियां करते हैं। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है। छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुई टोकरी जिसे दउरा कहते है, में पूजा के प्रसाद, फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल, और पूजा का अन्य सामान लेकर टोकरी में रखकर घर का पुरुष अपने हाथों से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है।
उषा अर्घ्य
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं। पूजा-अर्चना के समाप्त होने के बाद घाट का पूजन होता है एवं उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करते हैं।
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