6 और 7 सितंबर को देश भर में जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। इसे गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, श्री जयंती, अष्टमी रोहिणी और कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाये जानेवाले इस त्योहार शुरूआत सुबह से होती है और आधी रात तक चलती रहती है। कई अन्य व्रतों के विपरीत, कृष्ण जन्माष्टमी का उपवास 24 घंटे लंबा होता है और आधी रात के बाद यानी भगवान कृष्ण के जन्म के बाद ही पारण किया जाता है। पूरे दिन कृष्ण भक्त मंदिरों में जप और कीर्तन चलता रहता है।
श्रीकृष्ण की पूजन विधि
इस दिन भक्तजन भगवान कृष्ण का अभिषेक करने के बाद उनकी मूर्तियों को सजाते हैं और उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े और आभूषणों पहनाते हैं। उन्हें झूले पर बिठाया जाता है और फूलों, रोशनी वाली झालरों आदि से सजावट की जाती है। इनके लिए सजी-धजी बांसुरी भी रखी जाती है। श्रीकृष्ण को भोग लगाने के लिए कई तरह के प्रसाद बनाये जाते हैं। इनमें धनिया पंजीरी, मिश्री माखन, पंचामृत, खीर, मखाना पाग, आदि छप्पन भोग थाली शामिल है। देश के कई हिस्सों में इस दिन दही हांडी उत्सव भी मनाया जाता है।
इस तरह करें श्रीकृष्ण को प्रसन्न
- जन्माष्टमी के मौके पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल विग्रह को खीरे में स्थापित किया जाता है। फिर रात के 12 बजे शालिग्राम को निकालकर, जन्मोत्सव मनाते हैं।
- मान्यता है कि भगवान कृष्ण को पीले वस्त्र वस्त्र बहुत पसंद है। इसलिए इस दिन पीले या गुलाबी वस्त्र पहनकर पूजन करना अच्छा माना जाता है।
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर शालिग्राम का अभिषेक करना बेहद शुभ माना जाता है। शंख के माध्यम से श्रीकृष्ण पर जल या दूध अर्पित करें। ऐसा करने से घर में सुख- समृद्धि आती है।
- भगवान कृष्ण को माखन और मिश्री बहुत प्रिय है। इसलिए लड्डू गोपाल को खीर, माखन, मिश्री, दूध की मिठाई, पंजीरी आदि का भोग लगाएं। साथ ही उसमें तुलसी के पत्ते जरूरी डाल लें।
- जन्माष्टमी के पर्व पर भूलकर भी काले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा में काले कपड़ों का निषेध बताया गया है।
- जन्माष्टमी के दिन तुलसी के पत्ते ना तोड़ें। बल्कि एक दिन पहले ही तुलसी का पत्ते तोड़कर रख लें।
डिसक्लेमर
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