ग्वालियर। सनातन धर्म में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के विशेष महत्व है। कान्हा का जन्मोत्सव पूरे उत्साह और आनंदमय होकर मनाया जाता है। बाकायदा मंदिरों के साथ यशोदानंद पालने में झूला झूलते हैं। श्रीकृष्ण भक्त जन्माष्टमी को व्रत रखकर अपने आराध्य को माखन-मिश्री का भोग अर्पित करते हैं। इस वर्ष देवकीनंदन के जन्मोत्सव पर 30 वर्ष ऐसा अतिसुंदर ग्रह योग बन रहा है, जब वासुदेवनंद के इस पावन धरा पर लीला करने के लिये अवतरित होने पर बना था। विशिष्ट संयोग सूर्य और शनि का रहेगा। स्वराशि में गुरु रहेंगे। मेष राशि में वक्री तथा चंद्रमा रहेगा। अपने उच्च अंश वृषभ राशि में जन्म उत्सव की पूजा अवधि 46 मिनट रहेगी। बुधवार को स्मात शैव मत के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे। वही वैष्णव संप्रदाय के लोग गुरुवार को जन्माष्टमी मनाएंगे।
अष्टमी तिथि बुधवार दोपहर 3:37 बजे से होगी
हिंदू पंचांग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि छह सितंबर को दोपहर 3:37 बजे शुरू होगी और 7 सितंबर शाम 4:14 पर समाप्त होगी। पुराणों में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात 12:00 बजे रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल रोहिणी नक्षत्र छह सितंबर की सुबह नौ बजे से सात सितंबर की सुबह 10:25 तक रहेगा। इस मान्यता के साथ गृहस्थ जीवन वाले लोग छह सितंबर को जन्मोत्सव मनाएंगे। वैष्णव संप्रदाय में श्रीकृष्ण की पूजा सात सितंबर को की जाएगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी छह सितंबर और सात सितंबर को दोनों दिन मनाई जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त छह सितंबर की मध्य रात्रि 12:02 से मध्य रात्रि 12:48 तक रहेगी। इस तरह पूजा की अवधि केवल 46 मिनट की होगी। इस वर्ष भगवान कृष्ण का यह 5250 वा जन्म उत्सव है।
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