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पर्यावरण को लेकर इंदौर में विद्वानों ने कहा- यह समय ग्लोबल वार्मिंग का, हम सभी डेंजर जोन में

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इंदौर। नई पीढ़ी में प्लास्टिक की बोतल और पेपर नैपकिन के प्रयोग का चलन बेतहाशा बढ़ गया है। यह ठीक नहीं। इस पीढ़ी को यह समझना चाहिए कि इन दोनों वस्तुओं के प्रयोग से पर्यावरण दूषित होता है। पेपर नैपकिन बनाने के लिए पेड़ों की बलि ली जाती है। इस समय बढ़ते वाहन भी बड़ी चिंता का विषय हैं। हवा का जो प्रदूषण है, उसमें से 40 प्रतिशत प्रदूषण वाहन और यातायात से हो रहा है। हमारे संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं और उसके साथ में बुनियादी कर्तव्य भी निश्चित हैं। अत: हम सबको अधिकारों से पहले कर्तव्यों का भान होना चाहिए।

यह बात प्रीतमलाल दुआ सभागृह में अभ्यास मंडल द्वारा आयोजित व्याख्यान में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने कही। वे ‘संवैधानिक प्रविधान में पर्यावरण संरक्षण और आमजन की भूमिका’ विषय पर मासिक व्याख्यान में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व में वन को कायम रखने में नागरिकों की जिम्मेदारी को भी चिह्नित किया गया है। उन्होंने कई उदाहरण के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण में न्यायालय द्वारा दिए गए योगदानों की जानकारी दी।

न्यायमूर्ति शुक्ला ने कहा कि वन के रिसोर्स का बेहतर उपयोग किया जाना चाहिए। एक समय हमारा मध्य प्रदेश जंगल से भरा हुआ प्रदेश था। उसी का परिणाम है कि आज हमें अच्छी और शुद्ध वायु मिल पा रही है। इस समय पूरा विश्व प्रदूषण से पीड़ित है। कार्यक्रम में अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता, धर्मेंद्र चौधरी, डा. गौतम कोठारी, मदन राणे, पद्मश्री भालू मोंढे, वैशाली खरे, पल्लवी अढ़ाव, दीप्ति गौड़, माला सिंह ठाकुर, अशोक कोठारी समेत कई लोग मौजूद रहे।

कार्यक्रम में 87 वर्षीय वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक चितले ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कई मूलभूत सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि वकालत करते हुए मुझे 64 वर्ष हो गए हैं। मुझे याद है कि उच्च न्यायालय के गेट के पास अफ्रीकन प्रजाति का एक पेड़ लगा हुआ था, जिसे काट दिया गया। क्यों काटा गया? यह किसी को नहीं मालूम है। जिला कोर्ट भवन वर्ष 1905 में बनाया गया था। इसके गेट के पास एक बरगद का पेड़ था। उसे भी काट दिया गया है। क्यों काटा, किसी को नहीं मालूम? अब इस कोर्ट को नए स्थान पर ले जाया जा रहा है। जहां इसे ले जाने की योजना है, वह तालाब की जमीन है। उस जमीन पर कोर्ट को क्यों ले जा रहे हैं? वर्ष 1920 के बाद से इंदौर में कोई भी नया तालाब नहीं बना है। यह दौर ग्लोबल वार्मिंग का समय है। हम सभी डेंजर जोन में हैं। हमें यह सोचना होगा कि हम अपने बच्चों को कैसा वातावरण देकर जाएंगे।

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