यह माना जा रहा था कि वे यहीं से चुनाव लड़ेंगी। शुक्रवार की सुबह उनके चुनाव न लड़ने की जानकारी सामने आते ही शहर की राजनीति में उथल-पुथल मच गई। यह हलचल भाजपा से लेकर कांग्रेस के खेमे तक में नजर आई। यशोधरा राजे ने अभी तक कोई भी चुनाव नहीं हारा है। उनके चुनाव न लड़ने के फैसले से राजनीतिक पंडित भी हैरान हैं।
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि अंदरखाने की खबर यह है कि इस सीट से पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया को लड़वाना चाहती है, जिससे यशोधरा राजे खुद पीछे हट गई हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने प्रदेश कार्यालय को पत्र देकर चुनाव लड़ने में असमर्थता जता दी। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को हवाला देते हुए चुनाव न लड़ने की बात कही है। उन्हें चार बार कोरोना हाे चुका है। वे अपना विदेश में इलाज कराकर भी लौटी हैं। ऐसे में चुनाव की भागदौड़ नहीं करना चाहती हैं। बताया जा रहा है कि चार-पांच महीने का ब्रेक लेने के बाद वे समीकरण सही होने पर लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं।
दूसरी सूची आने के बाद बदले समीकरण
चार सितंबर को चुनाव लड़ने का स्पष्ट संकेत देने के कुछ दिन बाद चुनाव न लड़ने की बात के पीछे भाजपा की दूसरी सूची भी वजह बताई जा रही है। सोमवार जारी हुई भाजपा की दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को मैदान में उतारा, जिसमें नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल के नाम थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव लड़ने की बात भी सामने आने लगी। वे शिवपुरी से चुनाव लड़ सकते हैं। यह भी खेल मंत्री के चुनाव न लड़ने की एक वजह के रूप में देखी जा रही है।
दो दिन पहले ही नजदीकियों को दी सूचना
दो दिन पूर्व बुधवार को खेल मंत्री शिवपुरी दौरे पर आई थीं। यहां उन्होंने कलेक्ट्रेट में समीक्षा बैठक बुलाई थी, लेकिन एमपीईबी और पीएचई को छोड़ अन्य विभाग के अधिकारियों को बिना बैठक रवाना कर दिया। बिजली कंपनी की समीक्षा में भी उन्होंने कुछ प्रकरणों में विधायक निधि से मदद दी आैर रवाना हो गईं। इससे कई लोग अचंभे में थे कि कई दिनों बाद भी बैठक होने पर उन्होंने अधिक बात नहीं की। ग्वालियर जाने से पहले मंत्री ने यहां अपने कुछ करीबी लोगों को अपने फैसले के बारे में भी जानकारी दे दी थी कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं।
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