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बारिश का पानी को ग्रामीणों व प्रशासन ने सहेजा, खेतों को भूमिकटाव से मिली मुक्ति

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मुरैना। बारिश का पानी बीहड़ व नदियों के किनारे बसे जिन गांवों के लिए मुसीबत बन चुका था, वही पानी अब वरदान साबित हो रहा है। पहले यह बारिश का पानी व्यर्थ बहता और अपने साथ भारी मात्रा में खेतों की मिट्टी भी बहा ले जाता। प्रशासन के साथ ग्रामीणों ने बारिश के पानी को सहेजने का काम किया। नतीजा खेतों को भूमिकटाव से मुक्ति मिल गई। तालाबों में सहेजा जा रहा बारिश का पानी गांवों के भूजल स्तर को बढ़ाने से लेकर सिंचाई तक के काम में आ रहा है। गांवों में यह प्रयोग नहीं हुआ, वहां जमीन का कटाव लगातार हो रहा है।

मुरैना जिले में बीहड़ों के किनारे बसे गांवों के खेतों के लिए बारिश के पानी का यह बहाव जमीन को छीनने वाला साबित होता था। बीहड़ व उनके किनारे के खेतों की मिट्टी रेतीली है, इसलिए बारिश के पानी से कटाव ज्यादा होता है। बीहड़ों में हर बारिश में पुराने रास्ते मिटकर नए रास्ते बन जाते हैं।

साल 1976-77 में मुरैना जिला प्रशासन के एक सर्वे में पाया कि बीहड़ किनारे बसे गांवों में 4000 एकड़ से ज्यादा जमीन भूमि कटाव से खराब हो गई है। उसके बाद जौरा विधानसभा के तत्कालीन विधायक सूबेदार सिंह सिकरवार ने बीहड़ कटाव रोकने की योजना बनाई। उसके तहत जिन गांवों में बारिश का पानी ज्यादा इकट्ठा होता था या जिन गांवों से होकर बारिश का पानी चंबल व क्वारी नदी में मिलता है, उन गांवों में तालाब बनाए गए।

जिला प्रशासन, ग्राम पंचायतों की मदद से सरसेनी, पंचमपुरा, बर्रेड, खिडोरा आदि गांवों में तालाब खुदवाए गए। इन तालाबों में बारिश का पानी जमा हुआ और जो पानी नदियों में मिलता था वह गांव के बाहर ही रोक दिया। इससे खेतों की भूमिकटाव ऐसा रुका कि जिन गांवों में यह तालाब बने हैं, वहां 80 से 90 एकड़ जमीन को भूमिकटाव से बचा लिया है।

प्रयोग नहीं वहां भूमि कटाव बड़ी समस्या

दूसरी ओर बागचीनी से लेकर देवगढ़ और चिन्नौनी क्षेत्र से लेकर अंबाह-पोरसा तक ऐसे एक सैकड़ा से ज्यादा गांव हैं, जहां बारिश में बीहड़ क्षेत्र की जमीनों का कटाव तेजी से होता है। कई जगह खेतों की जमीन से लेकर सड़क किनारों तक की मिट्टी बारिश के पानी के साथ बह गई है। बागचीनी से देवगढ़ जाने वाली सड़क ही भूमि कटाव का शिकार हो चुकी है। अंबाह क्षेत्र में नीवरीपुरा, ऐसाह, पोरसा के नगरा क्षेत्र के कई गांवों में बीहड़ किनारे की जमीन बारिश में इतनी कट गई है कि खेतों का क्षेत्रफल कम हो गया है।

ग्रामीणों ने बचाए तालाब

चार दशक पहले बनाए गए इन तालाबों की देखरेख प्रशासन ने बंद कर दी। करीब 20 साल पहले सरसेनी व खिड़ोरा गांव के तालाबों में बारिश का पानी नहीं रुक पाता था, यह समस्सा देख ग्राम पंचायत व ग्रामीणों ने तालाबों का गहरीकरण किया। अब इन तालाबों में बारिश का पानी गर्मी के सीजन तक जमा रहता है। पंचमपुरा व बर्रेड गांव के तालाबों में भी बारिश का पानी जमा होता है। तालाबों के पानी से मवेशियों को पीने के पानी की सुविधा हुई है, जिन गांवों में तालाब बने हैं वहां का भूजल स्तर भी स्थिर बना हुआ है।

तालाब बनाकर कटाव को रोकने का प्रयास

सात-आठ गांवों में यह तालाब बने जो आज 40 साल बाद भी भूमिकटाव व भूजल स्तर को गिरने से रोके हुए हैं। भूमि कटाव को रोकने का यह प्रयोग काफी सफल है। चंबल, क्वारी नदी व बीहड़ किनारे के गांवों में भूमि कटाव की समस्या बहुत बड़ी है। हमने तालाब बनाकर भूमि कटाव को रोकने का प्रयास किया, जो सफल रहा।

सूबेदार सिंह सिकरवार, पूर्व विधायक

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