वो कंपनी, जो साल का प्रोजेक्ट छह साल में भी पूरा नहीं कर पाई है। काम अब भी अधूरा है। सवाल उठना लाजिमी है कि टाटा पर मेहरबानी क्यों। जवाब महापौर मुकेश टटवाल ने ‘नईदुनिया’ को दिया। कहा कि ‘ठेका देकर फंस गए हैं। मुझे भी टाटा का काम समझ नहीं आ रहा। कार्रवाई के लिए नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग के अफसरों को तलब किया है। सप्ताहभर में बैठक कर ठोस निर्णय लिया जाएगा।’
मालूम हो कि नगर निगम एक्ट में स्पष्ट प्राविधान है कि समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरा न करने पर नगर निगम संबंधित ठेकेदार फर्म का ठेका निरस्त कर उसकी अमानत राशि राजसात कर फर्म को ब्लैक लिस्टेड कर सकती है। इसके पालन में निगम ने कमजोर आय वर्ग के लोगों के लिए कानीपुरा मार्ग और मंछामन क्षेत्र में आवासीय मल्टी बनाने का काम पाई ओमनी कंपनी का ठेका साल 2019 में निरस्त किया था और बीते सप्ताह ज्योति इन्फ्राटेक कंपनी का भी कर दिया। निर्णय, अनुबंध अवधि समाप्त होने के एक साल के भीतर ही ले लिया गया।
ये नीतिगत और व्यवस्थागत रूप से ठीक है। मगर तुलना जब भूमिगत सीवरलाइन प्रोजेक्ट से करते हैं तो पाते हैं कि साल 2017 में शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट 2019 में पूरा हो जाना था, पर वर्ष 2023 में भी ये अधूरा है। कायदे से काम में लापरवाही बरतने पर इसका ठेका भी कई वर्ष पहले निरस्त कर देना था पर नहीं किया गया। उल्टा हर छह माह में प्रोजेक्ट पूर्ण करने की समयावधि बढ़ाते चले गए। हां, ठेका निरस्त करने के 14 नोटिस देकर दंड स्वरूप कंपनी पर 22 करोड़ रुपये की पेनल्टी जरूर लगाई मगर इससे अधिक कुछ न किया।
काम पिछड़ने की वजह टाटा, नगर निगम और वेप्कास कंपनी के अफसरों के बीच तालमेल की कमी और जनता का समर्थन न मिलने के रूप में सामने आती रही। अफसर-जनप्रतिनिधि तेजी से काम कराने के निर्देश देते रहे और टाटा के मैनेजर काम करने को साइट क्लियर करके न देने, नागरिक सहयोग न मिलने और ड्राइंग-डिजाइन देरी से मुहैया कराने राग अलापते रहे। प्रोजेक्ट की वर्तमान स्थिति ये है कि शिप्रा नदी के किनारे 15 किलोमीटर लंबी बड़ी पाइपलाइन बिछाने का काम काम अब भी 400 मीटर हिस्से में बचा है।
ये काम 31 अक्टूबर तक पूर्ण करने का लक्ष्य टाटा ने रखा है। शहर के 54 में से 35 वार्डों में सीवर पाइपलाइन नेटवर्क बिछाने का 64 प्रतिशत काम हो चुका है। लक्ष्य 413 किलोमीटर में से 265 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है। कालभैरव मंदिर क्षेत्र में सुरंद खोद 550 मीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है और गऊघाट क्षेत्र में 250 मीटर पाइपलाइन बिछाने का काम बाकी है। निगम ने 30 नवंबर तक प्रोजेक्ट पूरा करने के निर्देश दिए हैं पर काम की गति देख ये प्रोजेक्ट साल 2023 छोड़, साल 2024 में भी पूर्ण होना मुश्किल दिखाई पड़ता है।
स्वीमिंग पूल फेज- 2 प्रोजेक्ट देख रहे ठेकेदार को भी राहत दी
नगर निगम से संबद्ध उज्जैन स्मार्ट सिटी कंपनी ने आगर रोड स्थित निगम मुख्यालय के पीछे धरातल पर आकार लिए स्वीमिंग पूल के दूसरे चरण का काम मार्च- 2019 में शुरु कराया था। कायदे से फरवरी 2020 तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाना था, जो अब भी अधूरा है। लगभग 10 प्रतिशत काम अब भी बाकी है। संभागायुक्त डा. संजय गोयल ने पिछले माह स्वीमिग पूल कम स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स फेज-2 परियोजना स्थल का निरीक्षण कर काम तेजी से पूर्ण कराने के निर्देश दिए थे। कहा कि स्वीमिंग पूल में विशेषकर प्रतिभाशाली बच्चों को अनिवार्य रूप से प्रवेश दिया जाए। गांव के बच्चों के लिए विशेष स्थान आरक्षित किया जाए। उन्हें बताया था कि 19 करोड़ करोड़ 50 लाख रुपये खर्च कर डाइविंग पूल, लीजर पूल, जिम, टेनिस कोर्ट, रेस्त्रा बनाया गया है। काम पूर्णता की ओर है।
किसी भी ठेकेदार फर्म पर दरियादिली दिखाने जैसी कोई बात नहीं है। ज्योति इन्फ्राटेक कंपनी को भी काम आगे बढ़ाने का पर्याप्त अवसर दिया था मगर कंपनी अपना सामान समेटकर चली गई थी। निगम ने और ज्योति इन्फ्राटेक ने लीगल नोटिस भी भेजे। उसके बाद ही कार्रवाई की गई। टाटा प्रोजेक्ट के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जा रही है।
रोशन कुमार सिंह, आयुक्त, नगर निगम
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