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मप्र में आदिवासियों ने फिर जताया भाजपा पर भरोसा

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भोपाल। मध्य प्रदेश में आदिवासियों ने भाजपा पर ही भरोसा जताया है। लोकसभा की छह सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। चार सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों के अतिरिक्त बालाघाट और छिंदवाड़ा सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वर्ग निर्णायक भूमिका में हैं।

2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर था पर लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ खड़े हुए। 2023 के विधानसभा चुनाव में कुछ अंचलों में आदिवासियों ने कांग्रेस का साथ दिया तो कुछ जगह यह भाजपा के साथ रहे। लोकसभा चुनाव में इन्हें साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आदिवासी बहुल सीटों पर प्रचार किया।

पीएम मोदी के नेतृत्व पर जताया भरोसा

अब चुनाव परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि आदिवासी समाज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया है। मालवांचल की तीन आदिवासी सीटों पर लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्ष होने की संभावना दिख रही थी।

विधानसभा चुनाव 2023 के परिणामों पर नजर डालें तो खरगोन, रतलाम और धार जैसी सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने अधिक सीटें जीती थीं, इसलिए भाजपा के लिए चुनौतियां भी अधिक थी। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में कांग्रेस उत्साहित थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झाबुआ जिले से ही लोकसभा चुनाव के प्रचार का शंखनाद कर ऐसा माहौल बनाया कि सारे परिणाम भाजपा के पक्ष में आ गए।

रतलाम-झाबुआ सीट से कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कांग्रेस को भाजपा की अनीता चौहान ने पराजित कर दिया। खरगोन में भी दोनों दलों के बीच रोचक संघर्ष का माहौल बना। भाजपा ने यहां फिर सांसद गजेंद्र सिंह पटेल को ही टिकट दिया था, यहां भाजपा को जीत मिली।

गौरतलब है कि विधानसभा में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में भी भाजपा को 24, कांग्रेस को 22 और एक पर अन्य को विजय मिली थी। मालवांचल में जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) की उपस्थिति को भाजपा की राह में बाधा माना जा रहा था, लेकिन जयस के प्रभाव को इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने समाप्त कर दिया।

 

खरगोन में भाजपा ने सुधारा रिकॉर्ड

 

आदिवासी संसदीय क्षेत्र खरगोन में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से 5 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस को एसटी की चार और भाजपा को एक सीट पर विजय मिली। इसी तरह एक अनुसूचित जाति की सीट भाजपा और अनारक्षित दो सीटों में एक-एक भाजपा कांग्रेस को मिली थी यानी आठ में से कांग्रेस के पास पांच और भाजपा के पास तीन सीटें थीं, इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में भाजपा ने परिणाम को बदलने में सफलता हासिल कर ली।

धार लोकसभा सीट मालवांचल में ही धार भी आदिवासी बहुल सीट है। विधानसभा चुनाव में यहां पांच एसटी की सीटों में से कांग्रेस को चार और भाजपा को एक सीट मिली थी। अन्य तीन अनारक्षित सीटों में से एक कांग्रेस और दो भाजपा के पास थीं।

भाजपा ने यहां सांसद छतर सिंह दरबार का टिकट काटकर पूर्व सांसद सावित्री सिंह को प्रत्याशी बनाया था। रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट सबसे दिलचस्प मुकाबला रतलाम-झाबुआ सीट पर माना जा रहा था। यहां की आठ में से सात विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से भाजपा और कांग्रेस के पास तीन-तीन सीटें हैं।

एक अन्य सीट भारत आदिवासी पार्टी के पास है। अनारक्षित सीट मिलाकर भाजपा ने यहां चार विस सीटें जीती थीं। यहां से भाजपा ने कांतिलाल भूरिया की टक्कर में गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर अनीता चौहान को उतारकर नारी शक्ति के भरोसे नैया पार लगाने की रणनीति बनाई, जो सफल रही।

मंडला में फग्गन सिंह कुलस्ते भी जीते मंडला लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी रहे फग्गन सिंह कुलस्ते के खिलाफ क्षेत्र में नाराजगी थी। इसके बावजूद वह कांग्रेस के ओंकार सिंह मरकाम को हराने में सफल रहे। इस आदिवासी सीट से कुलस्ते पहले छह बर सांसद रह चुके हैं। इधर, शहडोल में हिमाद्री सिंह भाजपा का गढ़ रही है। बैतूल सीट पर भी कड़ा मुकाबला था लेकिन भाजपा ने कब्जा बरकरार रखा।

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